फ़िल्म-संगीत का सुनहरा दौर ४० के दशक के आख़िर भाग से लेकर ७० के दशक के अंतिम भाग तक को माना जाता है। और आज आम जनता से उनके मनपसंद गीतों के बारे में अगर पूछा जाये तो वो भी इन्हीं दशकों के गीतों की तरफ़ ही ज़्यादातर इशारा करते हुए पाए जाते हैं। लेकिन इस सुनहरे दौर से पहले भी तो एक दौर था जिसे आज हम लगभग भुला चुके हैं! नई पीढ़ी के पास उस दौर के फ़िल्मों, गीतों और कलाकारों के बारे में बहुत कम ही जानकारियां उपलब्ध हैं। अफ़सोस की बात है कि जिन लोगों ने फ़िल्म-संगीत की नीव रखी, जिनकी उंगलियाँ थामे फ़िल्म-संगीत ने चलना सीखा और अपनी अलग पहचान बनाई, उन्हें हम आज भूलते जा रहे हैं, जब कि सच्चाई यह है कि हमें अपनी जड़ों, अपने पूर्वजों, अपने उत्स को कभी नहीं भुलाना चाहिये, क्योंकि अगर हम ऐसा करते हैं तो हम दुनिया के सामने अपना ही परिचय खो बैठते हैं।
आज हाइ-टेक्नो, आत्याधुनिक इन्स्ट्रुमेण्ट्स, बीट्स और फ़ास्ट रिदम की चमक धमक के सामने फ़िल्म-संगीत का वह भूला बिसरा ज़माना शायद बहुत ही फीका लगने लगा हो, लेकिन वह हमारा इतिहास है जिस पर हमें नाज़ है, और जिसे सहेज कर रखना हमारा कर्तव्य भी है। पचास के दशक से पहले भी फ़िल्म-संगीत के दो और दशक थे, जिनमें सवाक फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत का जन्म हुआ, और उस ज़माने के प्रतिभाशाली कलाकारों की उंगलियाँ थाम कर फ़िल्म-संगीत ने चलना सीखा, आगे बढ़ना सीखा। फ़िल्म-संगीत की उस शैशावस्था को, जिसे आज हम लगभग भूल चुके हैं, जिनकी यादें आइने पर पड़ी उस प्रतिबिम्ब की तरह धुंधली हो गई हैं, जिस पर समय की धूल चढ़ी हुई है, इस पुस्तक के माध्यम से उसी शैशवावस्था को पुनर्जीवित करने का एक छोटा सा प्रयास हम कर रहे हैं। यह प्रयास है आज की पीढ़ी को अपने उस इतिहास के बारे में अवगत कराने का, जिस इतिहास के आधार पर आज वो डिस्कोथेक में रीमिक्स फ़िल्मी-गीतों पर झूमती है। उन्हें अपनी जड़ों से परिचित कराना
हमारा कर्तव्य है । यह प्रयास उस गुज़रे ज़माने के अनमोल फ़नकारों को श्रद्धांजली भी अर्पित करता है, जिन्होंने बिना किसी आधुनिक साज़-ओ-सामान के, और तमाम विपरीत परिस्थितिओं में कार्य कर फ़िल्म-संगीत को सजाया, संवारा, उसे अपने पाँव पर खड़ा किया और उसे अपनी अलग पहचान दी। यह पुस्तक नमन करती है फ़िल्म-संगीत के शुरुआती दौर से जुड़े सभी कलाकारों को।
फ़िल्म-संगीत पर शोधकर्ताओं में पहला नाम हर मन्दिर सिंह ‘हमराज़’ जी का आता है। सवाक् फ़िल्मों के उदयकाल अर्थात् सन् १९३१ से लेकर आगामी ४ दशकों में, १९७० तक निर्मित लगभग ४४०० हिन्दी फ़िल्मों के लगभग ३५,००० गीतों के पूर्ण विवरण को ‘हिन्दी फ़िल्म गीत कोश’ के ४ दशकवार खण्डों में प्रस्तुत किया गया है। फ़िल्म-संगीत के लिए उनकी इस कोशिश की जितनी प्रसंशा की जाए कम है। दूसरे, पंकज राग और योगेश जाधव ने अलग अलग पुस्तकों में फ़िल्म-संगीत के संगीतकारों पर विस्तृत जानकारी दी है। ये पुस्तकें हैं पंकज राग लिखित ‘धुनों की यात्रा – हिन्दी फ़िल्मों के संगीतकार (१९३१ – २००५)’ और योगेश जाधव लिखित ‘सुवर्ण युगवाले संगीतकार’। ‘हमराज़’ द्वारा सम्पादित त्रैमासिक पत्रिका ‘लिस्नर्स बुलेटिन’ में भी फ़िल्म-संगीत के इतिहास की उत्कृष्ट जानकारी नियमित रूप से मिलती चली आई है। ‘हिन्दी फ़िल्म गीत कोश’ में फ़िल्मी गीतों को एक डाटाबेस के रूप में प्रस्तुत किया गया है। किसी भी गीत के बारे में जानकारी चाहिए तो अनुक्रमणिका में फ़िल्म का नाम ढूंढ़ कर उसके गीतों और उन गीतों के गायक/ संगीतकार/ गायक आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। दूसरी तरफ़ पंकज राग और योगेश जाधव की पुस्तकों में संगीतकारों के जीवन और उनके संगीत करियर का विवरण उपलब्ध है। ऐसे में एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता महसूस होती है जो फ़िल्म-संगीत के इतिहास को साल-दर-साल आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत कर सके, एक वार्षिक समीक्षा के रूप में। इससे फ़िल्म-संगीत के बदलते मिज़ाज को और ज़्यादा बेहतर तरीक़े से महसूस किया जा सकेगा। ‘गीत कोश’ में दी गई जानकारी एक महत्वपूर्ण डाटाबेस है, पर विश्लेषणात्मक नहीं। राग और जाधव की किताबें भी संगीतकारों पर केन्द्रित होने की वजह से साल-दर-साल फ़िल्म-संगीत के विकास को क़ैद करने में असफल है। ‘कारवाँ सिने-संगीत का – उत्पत्ति से स्वराज के बिहान तक’ में हमने कोशिश की है कि १९३१ से लेकर १९४७ तक के फ़िल्म-संगीत के इतिहास की साल-दर-साल समीक्षा करें और इसमें महत्वपूर्ण फ़िल्मों और उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारियों को शामिल करें ।
इस पुस्तक को भले ही पिछले तीन महीनों में लिखकर पूरा किया गया
हो, पर अगर सही मायने में देखा जाये तो इसकी नींव करीब ७-८ वर्ष पहले ही रख दी गई थी। मेरे मन में हमेशा से विचार था कि फ़िल्म-संगीत के इतिहास पर कोई किताब होनी चाहिए, इसलिए कम्प्यूटर खरीदने के तुरन्त बाद ही मैंने इंटरनेट से जानकारियाँ बटोरनी शुरु कर दीं। पूना में स्थित होने की वजह से ‘नैशनल फ़िल्म आरकाइव ऑफ़ इण्डिया’ (NFAI) की लाइब्रेरी में जाने का मौका मिला और वहाँ मौजूद कई पत्रिकाओं व पुस्तकों से महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुईं। इंटरनेट से प्राप्त जानकारियों की सत्यता की जाँच करना भी बहुत ज़रूरी था, जिसके लिए हर मन्दिर सिंह ‘हमराज़’ के ‘हिन्दी फ़िल्म गीत कोश’ को बतौर मुख्य संदर्भ प्रयोग में लाया गया है।
विविध भारती एक ऐसा रेडिओ चैनल रहा है जिसने ५० के दशक से लेकर आज तक फ़िल्म जगत के अनगिनत कलाकारों के साक्षात्कार रेकॉर्ड कर उन्हें अपने संग्रहालय में सुरक्षित किया है और समय समय पर जिनका प्रसारण भी होता रहता है। वर्षों से इन्हीं कार्यक्रमों में दी जा रही जानकारियों को शौकि़या तौर पर एकत्रित करने के मेरे अभ्यास का इस पुस्तक के लेखन कार्य में बहुत योगदान मिला। साथ ही इंटरनेट के माध्यम से कई कलाकारों के परिजनों से बातचीत करने का सौभाग्य भी मुझे मिला है, जिनसे गुज़रे ज़माने के इन कलाकारों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। इन नामों की सूची ‘आभार’ में भी दी गई है। इन विशेष संदर्भों के अतिरिक्त और जिन जिन सूत्रों से जानकारी ली गई है, उनका हर अध्याय के अंत में ‘संदर्भ’ शीर्षक में उल्लेख है। ‘कारवाँ सिने-संगीत का – उत्पत्ति से
स्वराज के बिहान तक’ पुस्तक में हमने जो कोशिश की है, आशा है यह आपके लिए एक सुखद अनुभव होगा।
इसकी
प्रति प्राप्त करने हेतु soojoi_india@yahoo.co.in पर सम्पर्क करें।
मूल्य: 595 रुपये (नि:शुल्क डाक)